Sunday, November 20, 2016

FOUR MONTH REFLECTIVE STATEMENT OF BED


      जब मैंने सोचा की मुझे बी.एड मई एडमिशन लेना है



यह मेरा आज का नही बल्कि शुरू से मेरा यही सपना है की मैं इक टीचर ही बनना चाहती थी | यह सपना मैंने बचपन से ही अपने माता पिता की आँखों से देखा था और शायद यही  वजह थी की बड़े होते होते ये मेरा भी सपना बन गया|  मैंने 11 वी कक्षा से ही सोच रखा था की मुझे आगे क्या करना है मैंने अपने दिमाग को पहले से ही बना रखा था |की किस किस तरह मुझे अपनी ज़िन्दगी मैं क्या क्या करना है | मैंने 2012 अपनी 12 वी कक्षा पास की और कॉलेज मई एडमिशन लिया मैंने (माता सुंदरी कॉलेज फॉर विमेंस ) में एडमिशन लिया और अपनी ग्रेजुएशन 2015 मई पूरी की जैसा की मैंने सोचा था की मुझे बी.एड ही करना  है पर मेरे परिवार के साथ कुछ एसा हुआ की मई एडमिशन नही ले सकी पर मैंने अपने आप को खली नही छोड़ा क्योकि की यह वो समय था की अगर में  अपनी पढ़ी को छोड़ देती तो में  दुबारा से आगे नही बढ़ पाती मैंने पढाई से जुड़े रहने के लिए मैंने सोचा की मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिस से मैं कुछ सिख सकों मैंने स्कूल के तह अपने आस पास क छोटे बच्चो को पढ़ना शुरू किया| उन बचो को पढ़ा कर मुझे ऐसा लगा की हाँ सच में मैंने जो सपना मेरे माता पिता की आँखों से देखा था पिछले एक साल वो सपना मैंने अपनी आँखों में भी देखा और मुझे सच में ये ऐहसास हुआ की कही ना कही मैं भी इसी चीज़ में जाना चाहती हों| और मैंने उन बच्चो को पढ़ाने के साथ साथ साथ अपने बी.एड की भी तैयारी शुरू कर दी |मै अलग अलग तरह की किताबो से पढ़ रही थी साथ ही उन बच्चो ने जिन को पढ़ा रही थी उन सभी की किताबो नै मुझे पड़ने में काफी सहयता की |



            MARCH 2016 को मैंने अपने तथा अपने माता पिता क सपनो को पूरा करने  का पहला क़दम उठाया मैंने बी.एड क लिए (I P UNIVERSITY) से  फॉर्म भरा अब मुझे लग रहा था की हाँ शायद मैं उस तरफ चलने लगी हों जो शायद मेरा रास्ता है |16 APRIL 2016 को मैने अपने बी.एड का टेस्ट दिया टेक्स्ट के टाइम पर इतने बच्चो को देख कर  मैं बहुत ज्यादा डर गयी थी की इतने सारे बच्चो मेरा में मेरा नंबर केसे आयेगा|











 23 APRIL 2016 रात 11 बजे क अस पास मुझे पता चला की बी.एड का रिजल्ट आ गया है मुझे रिजल्ट देखने से जायद इस बात की फ़िक्र थी की मेरा नंबर अगर नही आया तो मी क्या करूंगी क्योंकि मई बी.एड के अलावा किसी भी चीज़ का फॉर्म नही भरा था| लेकिन मैंने रिजल्ट देखा और पता चला की नंबर आ गया है और उस समय मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था क्युकी मैंने अपनी ज़िन्दगी क लिए इक क़दम आगये बड़ा दिया था| इस के बाद मेरे और काम शुरू हो गये मेरे एडमिशन से रिलेटेड और मैं उन में पुरे दिल और जान से लग गयी| और आखिर में मुझे ये पता चला की मेरी 1 AUGUST 2016 से क्लासेज शुरू हैं | मैंने अपने कॉलेज की सारी तैयारी के ली थी और बहुत साड़ी चीज़े मैंने सोची भी थी कॉलेज के बारे मई थी| मैं खुश और साथ मई थोड़ी सी डरी होई भी थी और इसका जवाब यही था की पता नहो क्या होगा केसे लोग होंग्ये सब केसे होगा|



                01AUGUST 2016 को मेरा पहला दिन जो की मुझे मेरे उस रस्ते पर चलने के  काबिल बना रहा था  मेरे सपने सच हो सकते है जैसा की मैंने उपर भी कहा की मैं काफी परेशान और थोड़ी सी डरी होई थी की क्या क्या होगा|  मेरा भी पहला दिन वेसा ही गया जेसा मैंने सोचा था |कुछ भी ठीक से समझ पाना बहुत मुश्किल था| सब बहुत मुश्किल सा लग रहा था | ऐसा लग रहा था की सब कुछ बहुत मुश्किल है| पहला दिन और नए नए लोग नए नए चेहरे और नया कोर्स मैं समझ नही पा रही थी बात करूं तो किस से करूँ समज पाना मुश्किल था लेकिन मेरे साथ एक अच्छी बात ये थी की मेरी चोतिअक्चोती बहिन मेरे साथ थी उसने भी मेरे ही साथ एडमिशन लिया था तो मुझे थोडा सहारा था की जो मुझे समझ नही आयेगा मई उसको समझा दूंगी और जो मुझे नही आयेगा वो मुझे समझा देगिदेगी तो इस बात से मुझे थोड़ी राहत थी की कोई न हो पर हम दोनों बहने हैं साथ मैं |  बारी बारी क्र क हमारे टीचर्स आ क्र हम सभी बच्चो को हमारे कोर्स के बारे मई जानकारी दे रहे थे जिस मई से केवल भुत कम चीज़े हममे समझ मैं आ रही थी और मैं अकेली ईएसआई नही थी बहुत सारे इसे ही बाचे थे जिन का यही हाल था |काफी सारी उलझनों के बाद पहला दिन ख़तम हो गया था |







FIRST MONTH OF B.ED

AUGUST 2016

मैंने जैसा सोचा था अगस्त का महिना उससे भी ज्यादा तीज चल रहा था पता ही नही चल रहा था की ये महिना अगस्त का है या फिर हम सभी कही पर रेल गाढ़ी मई बेथ क्र जा रहे है समाये हमरे साथ नही था वो हम सभी से बहुत तीज और आगये भी बढ़ रहा था |समझ नही आ रहा था की हम किस प्रकार से इसके साथ चले पढाई अब धीरे धीरे समझ आने लगी थ और सभी चाटर इक दुसरे की सहायता हर उस चीज़ मैं करते थे जो समझ मैं नही आती थी | अगस्त के शुरू मैं ही हम सभी बच्चो को डिवाइड कर  दिया गया क्यूंकि हमारे डिपार्टमेंट मई पुरे १०० बच्चे थे हम १०० छात्रों को 50 ,50 छात्रो मैं बाँट दिया गया और हममे सेक्शन A ओर सेक्शन Bनाम दिया गया, जहाँ  सेक्शन Aऔर B मैं बांटे गये वहीं हममे पता चला की हम सभी को १०० छात्रो को हाउस मैं  भी बांटा जायेगा और वही हुआ अगले ही दिन हम सभी को पता चल गया की हम किस किस हाउस मैं है |१०० छात्रो को ४  हाउस मैं बांटा गया था हर हाउस मैं 25,25 छाटर थे विवेकानंद,ग़ालिब,और्बिन्दो,और रहीम| कुछ इस प्रकार से हमारे हाउस थे मई ग़ालिब हाउस मैं थी| हममे बताया गया की हर सप्ताह मई इक दिन हूँ सब को मिल कर CCA मैं काम करना हुआ करेगा और यह काम किसी एक का नही बल्कि सभी बच्चो का होगा इस परकार के करिए से हम सभी को ज्यादा समय नही लगा एक दुस्सरे को जानने मैं और भाहूत ही जल्दी कक्षा क सभी छात्र  आपस मैं घुल मिल गये | हम सभी नै हर ग्रुप वर्क से एक नई चीज़ सीखी हम सभी नै वो सीखा जो हममे नही आता था और आपने साथियों को वो सिखाया जो उनको नही आता था और इसी प्रकार से हम हर साप्ताह मिल क्र काम करते थे मगर इन सब चीजों क साथ पदाहाई का भी भुत ज़ोर था पढाई तो जल्दी जल्दी चल रही थी |













SECOND MONTH OF B.ED

SEPTEMBER 2016



अगस्त का महिना पढाई ओए CCAके साथ केसे गया पता भी नही चला की खा शुरू हुआ और खान खत्म हुआ और इक और नया महिना हहमारे सामने खड़ा हुआ हम अपने पास बुला रहा है |लेकिन इक अची बात ये थी के सितम्बर के महीने तक आते आते हम सब चीजों क बारे मैं अच्छे  से जान गये थे | ये महिना पढाई  के कामो मैं  ही गुज़रा इस पुरे महीने मैं हम सभी एक  दुसरे के साथ पढाई को लेकर ज़यादा बात करते थे क्युकी सितम्बर क पुरे महीने मई हम सभी को प्रेजेंटेशन देनी थी जिसके अलग अलग नंबर भी लगने थे तो हम सभी इस चीज़ को लेकर परेशान रहते थे की क्या होगा केसे होगा हमारी टीचर्स नै और कुछ बच्चो नै खुद अपने दोस्तों के साथ अपने अपने ग्रुप्स बना लिए थेऔर इन्हिग्रौप्स के अंदर हम सभी को अपनी अपनी प्रेजेंटेशन की तैयारी कर के पूरी कक्षा क सामने उससे देना होता था | और मई इन सब चीजों को लेकर थोड़ी परेशान थी लेकिन समय के साथ सभी कुछ ठीक हो गया और मैंने हर प्रेजेंटेशन को अच्छे से दिया साथ ही मुझे मेरी टीचर्स की तरफ से भी इस चीज़ को लेकर काफी शब्बाशी मिली | और एक डर जो था वो निकल गया |

























THIRD MONTH OF B.ED

OCTOBER 2016



अक्टूबर का महिना मेरे लिए भुत ख़ास था क्युकी इस महीने मई हम सभी को इक एसा एहसास होने वाला था जिस एहसास के लिए हम सभी छात्र यहाँ पर आये थे| हमारे कॉलेज वालो नै हममे स्कूल मैं  भेजा गया  जिस मई हममे एसा लगा की ये हमारी लाइफ का वो पहला कदम था  हम लोग स्कूल मैं भेजा गया हममे  वहाँ बच्चो  को पढ़ने गये थे और वह हममे लगा की हम सही काम क्र रहे| वह हममे बहुत कुछ सिखने को मिला अलग अलग तरह के बच्चो को पढ़ने का मौका भी मिला और हममे ये भी एहसास हुआ की हम किस तरह के बच्चो को पढ़ा सकते हैं | मुझे बच्चन परसाद डोली संगुम विहार का स्कूल मिला था जो था तो मेरे घर से बहुत दूर तो था मगर मुझे वहन जा क काफी एहसास हुआ की हममे असल मई बच्चो क लिए करना क्या है क्कियुकी वो था तो इक गवर्मेंट स्कूल मगर मुझे वह जा क्र एहसास हुआ की आखिर मुझे सच मई कुछ करना है इन बच्चो के लिए|





























FORTH MONTH OF B.ED

NOVEMBER 2016

ये बी.एड का वो महिना था जिस मई हममे वो काम करना था जो शयद हमारे लिए सब से मुश्किल था हममे अपने एक्साम्स थे जो की हम सब क लिए बहुत मुश्किल क्युकी रूज़ रूज़ हममे पप्पेर देना था और ठीक से पढाई होई नही थी लेकिन हममे कितना आता है और हम कितना कर  सकते है हममे अपनी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं की हम कितने ज़यादा कामो को क्र सकते हैं कितना ज़यादा हम जानते है की हम को कितना आता है |और साथ ही साथ इसी मोंठ हमारा विवा भी होना था की हुस मई हम को अपनी सारी फाइल भी जम्मा करनी थी जो काम हमने किये थे |
 हमने इस पुरे महीने मैं यही सिखा की हममे बी.एड मई पढने के अलावा भी बहुत  ज़रूरी एक काम है जो हममे करना है वो है की हममे पढना भी है बी.एड मई सिर्फ इन्ही चीजों से काम नही होगा हममे पढना भी पड़ेगाF

JOURNALS




S.NO
TOPIC
REMARKS
1.
significant life experiences

2.
observations of life situations that evoke questions and responses

3.
questions on education, learning and teaching

















  1              जो मुझे हमेशा याद रहेगा



     यह बात उस समय की है जब मैं दसवी कक्षा मैं थी  2010 की | मार्च  का महीन अता और मेरे बोर्ड की परीक्षाओं का समय चल रहा था | मेरी अंग्रेजी की परीक्षा थी और रात के तीन बजे मैं अकेले बैठ  कर पढ़ रही थी | मेरी बहन जो की बहुत ज़यादा शरारती है उसने मुझे उस दिन भी नही छोड़ा उर अपनी खुराफाती शरारतो को मेरे साथ किया |मई चुप चाप बैठ  कर  पढ़ रही थी लेकिन आचानक मुझे लगा की कोई मेरे बराबर मैं आके खड़ा हुआ है| मैंने अपनी आँखे बंद कर  ली और सोचने लगी की शायद ज़यादा पढाई की वजह से मैं  पागल हो गयी हों मैंने पांच मिनट

बाद अपनी आँखे खोली और मैंने देखा की अभी भी कोई खड़ा है मेरे अंदर इतनी भी हिमत नही थी की मैं देख सकों वो कोन है मैं बहुत ज्यादा डर गयी थी | जब मैंने धीयान से देखा तो कोई सफ़ेद कपड़ो मैं खड़ा था और उसके बाद तो मैंने चिलाना शुरू कर दिया मेरे चिलाने की सब से बड़ी वजह थी रात के  तीन बजे  किसी को सफेद कपड़ो मैं देखना |और वो और कोई नही मेरी बहिन सूफिया मिराज थी जिन्होंने चाहा था की मेरा डर निकल जायेगा बल्कि उस के बाद मेरा डर निकलने की जगह ज़यादा बढ़ गया | सूफिया को मम्मी पाप से इस घटना के बाद बहुत डांट पड़ी आज भी उस  दिन के  बारे मैं सोच कर हस्ती हों मगर आज भी मैं डरती हों |







निष्कर्ष  [आपने विचार ]

      आखिर मैं हमने  यही सिखा की हममे  नही पता की किस के  साथ जीवन मैं क्या हुआ है कोन कितना दुखी है अंदर से , तो हम सब को कही ना कहीं एक  दुसरे के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए क्युइकी हमने किसी के मन को नही पड़ा है | क्युकी बहुत सारे कागज़ ऐसे भी थे जिन्हें पढ़  कर  मैडम और सुन  कर सभी  छात्र भी रो  रहे



When I believed in my self



यह बात 2012 की है जब एडमिशन का प्रोसेसेस शुरू हो चूका था। और मई भी अपने दोस्तों की हु तरह बहुत खुश थी। मुझे Delhi university  के  MATA SUNDRI COLLEGE FOR WOMENS  मैं एडमिशन मिला लेकिन वह मेरी किसी और दोस्त को एडमिशन नही मिल पाया था मई कॉलेज के शुरू शुरू के दिनों मई बहुत इन सिकियुर रहती थी। और कॉलेज का महूल भी मेरे लिए बहुत अलग था मैं ज़्यादा तक सूट ही पहनती थी और मेरी क्लास के बच्चे सूट पहनने एल लड़कियुं के बेटे मई बहुत बाते करते थे। की आंटी जी की तरह सूट पहनती है ये। मुझे धीरे धीरे इन बातों का पता चल गया और मैं ये सोच लिया की इनको कुछ क्र के दिखाना है।

      यह बात 2013 की है ।मुझे कॉलेज मई हुए इक साल हो चूका था और हमारा रिजल्ट पहले साल का गया था। मैंने अपने पसंदीदा विषय मई टॉप किया था  मैंने उर्दू मैं टॉप किया था मेरे 82%आये थे मेरे से ज़्यादा ये मेरे माता पिता के लिए गर्व और ख़ुशी की बात थिमुझे मेरी पहली ट्रॉफी 07-04-2014 मैं मिली थी।

    इसके बाद मेरे अंदर इक आत्मविश्वास बढ़ता चला गया। मैंने ये एहसास अपनी क्लास के बच्चों को दिलाया कि ज़रूरी नही अपनी अछि छवि बनाने के लिए हम अपने एस्प को बदल लें अपबे पहनावे को बदल लें नही बल्कि हम वेसे भी अछि छवि बना सकते हैं जैसे हम हैं 20014,2015 तक मैंने अपने कॉलेज से 5 ट्रॉफी और 12 सर्टिफिकेट अलग अलग चीज़ों मई हासिल किये

     मैं लोगो की सोच को बदलना चाहती हूं लोग ये सोचते हैं कि सूट पहने वाली लडकिया 4 दिवारी तक सिमित रगती है बल्कि यह गलत है।क्योंकि modern  होने के लिए मॉडर्न कपड़ो की नही बल्कि  modern  सोच की ज़रूरत होती है

















When my confidence level increase



यह बात 2014 की जब तक मेरे हाथ में मेरी मेहनत की लायी होइ 4 ट्रॉफी चुकी थी।मैंने अब अपने आप को पढाई के साथ साथ कॉलेज के कामो मई भी लगा लिया था। जैसे मैं क्लोज की मैगज़ीन की एडिटर बनी मई ग़ज़ल प्रतियोगिता डिबेट प्रतियोगिता जैसी चीज़ों को आर्गनाइज्ड कराया मैंने  Nizami Brothers को भी कॉलेज मई बुलाया। इन सभी चीज़ों पर मैंने जाम किया पर कहि अभी भी कमी थी।

    यह बात 5 जनवरी की है ममी अपने दोस्तों के साथ क्लास के बाद कैंटीन की सिडियूं पर बैठी होइ थी मैं उदास थी क्योंकि क्लास से निकलते समय नोटिस बोर्ड पर जो नोटिस मैंने देखा था मुझे उसमे जाना था पर साथ मैं कोई जाने को तैयर नही था। नोटिस डिबेट प्रतियुगीता का था मेरे पूरा धियान वही लगा हुआ था कुछ ही समय मैं मेरे पास इक लड़की आती है और मुझ से मेरा नाम लेकर पूछती की क्या आप इक़रा दी हो मई समझ नही पाती हों की ये कोण है वो दुबारा सवाल करती है और मई हाँ मई जवाब दे देती हूं। वो मुझे बता है कि उससे मेरी इक टियाचर नई मेरे पास भजेज है और वो मुझे बुला रही है मैं स्टाफ रूक्म मैं जातीं हों और मेरी टीचर मुझ से नाराज़ हो जर कहती है कि इक़रा अभी तक तम्हारा नाम क्यों नही आया मेरे पास डिबेट प्रतियुगीता के लिए मैं उनको सारीबाट बता देती हूं। उसके बाद वो मुझे कहती है कि जो तम्हाराई परेशानी वो इस लड़की की भी जो तुम्हे बुला कर लायी है उसकी भी यह परेशानी है ऐसा करो तुम दोनों साथ मैं इक दूसरे के साथ मिल कर काम करो दोनों की परेशानी खत्म हो जायेगी। और मैं चाहती हूं कि तुम दोनी ही इसमें भाग लो। वो पल मेरे लिए बिलकुल ऐसे थे जैसे वो लड़की मेरे लिए फरिश्ता बन क्र आयी हो। मैंने और उसने तैयारी शुरू क्र दी इर हम पूरी तरह उस दिन के इंतज़ार मई यह जिसका मई जब से इंतज़ार कर रही थी और आखिर वो दिन ही गया।

   प्रतियुगीता शुरू हो गयी थी सब अपना अपना काम शुरू क्र रहे थे सभी अच्छे से बोल रहे थे मेरे ये पहला टाइम था मतलब ये वाला काम पहली बार क्र रही थी मैं। ओरो को देख कर मैं बहुत ज़्यादा नर्वस थी क्योंकि सब बहुत अच्छे से बोल रहे थे अगली बारी मेरी थी मैं बहुत डरी ही थी अब मैं स्टेज पर थी। मई सब को देखदेख रही थी इतने सारे लोग और मई उन सब के सम्मन खड़ी हों कैसे बोली क्या बोलो मैंने अपनी आँखे बंद की और ये सोचा की ये सब बच्चे है और इन सब को कुछ नही पता और मई तो इनको जानती ही नही हों।और आँखे खिल क्र मैंने बोलना शुरू कर दिया मुझे ठीक से याद भी नही है कि मैंने आखिर बोला क्या क्या था। लेकिन मैंने अपना काम पूरा क्र लिया। थोड़ी ही दिएर मई सभी लोग बोल चुके थे और अब रिजल्ट का टाइम था मई बहुत नर्वस थी मुजगे मेरा नाम सुनाई दिया मैंने कहा क्या ये प्रियंका वो हस्स रही थी और मुझे ये समझ नही रहा था कि जय हम फर्स्ट हैं क्या यही बोला है अभी स्टेज पर किसी ने हाँहाँ मेरे कानों ने सही सुना था हमहम फर्स्टफर्स्ट थे। जो की मेरे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात थी साथ ही मैं बहुत शोकेड भी थी।  इसके बाद मुझे अपने ऊपर पूरी तरह ये विशवास हो गया कि अगर इंसान चाहे तो वो क्या नही कर सकता मैंने और मेरी साथी नै मिल क्र अलग अलग कॉलगकॉलग मई इस पर काम किया और हमे बहुत से इनाम भी मिले और मैंने खुल कर बोलना शुरू क्र

दीया



































2.  OBSERVATION OF LIFE SITUATIONS    THAT EVOKE QUESTIONS AND RESPONSES



.                     Misleading advertisement

यह बात थोड़े ही समय पहले की जब मसि टीवी की बहुत शुकींन थी और टीवी देखने मई मुझे भहुत आनंद मिलता था लेकिन उसी समय की बात है मैंने चीज़ों के बारे मैं सोचना शुरू कर दिया। मई टीवी को अब ऑब्सेर्वे करने लगी थी इर इक सवाल जो हर टाइम मेरे दिमाग मई घूमता रहता था वो था टीवी मई आने वाले एड्स हर ऐड मई महिलाये ही दिखती थी। पहले तो मैंने इस चीज़ को इग्नोर किया एमजीआर मुझे नही पता की यह चीज़ कब मेरे अंदर सवालो को जन्म देने लगी मेरे अंदर क्यों की भावना आने लगी की हर ऐड लड़कियां क्यों। जहा ज़रूरत नही है वह भी ये हैं और झा ज़रूरत है वह तो हैं ही ऐसा क्यों???????

     अगर भारत अपने आपको पुरुष प्रधान सम्माज मानता है तो टीवी एड्स मई महियाळून का प्रयुग क्यों अगर हम आँखे बंद कर के ये सोचने लगे की वो कौन कोन सी जगह है जहा महिलाओं को प्रयुग किया जा रहा है तो शायद समय कम पड़ जायेगा क्योंकि अगर हम खुद ही सोचें तो सच मई बहुत ज़्यादा चीज़े ऐसी है। मैं ये नही कह रही की हर जगहों से महिलाएं को हटा दिया जाये नही इस तो किया ही नही जस सकता है। मगर जिन जगहों पर ज़रूरत नही है उन जगहों पर से हटाना बेहतर होगा क्योंकि ऐसे ऐसे टीवी एड्स आते है जिन का हम समाज पर ख़ास के बाछो पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है कास क्र के छोटे बच्चो पर इन का बहुत बुरा परभाव पड़ता है।

 इसकी इक वजह बे रोज़ गारी को दे सकते हैं और इक सुझाव ये होगा की सरकार को इसके लिए कोई क़दम उठाना होगा। और इन चीज़ों को खत्म करना होगा।



  

 Why only women sacrifice





यह बात 2015 की है जब हमारे घर के पास वाली आंटी के बारे मैं हम पतापता चला। आंटी के 2 बेटे हैं इक बेटी है उनके बारे मैं हम्म पता चला की उनके बड़े बेटे नै भाग कर शादी की है। उन्होंने यह बात कई सालों से इस लिए छुपा रखा था कि लोग बाते करेंगये। इसलिए वो लोगो को बताना नही चाहते थे क्योंकि उनके बेटे नै इक सिख लड़की से शादी की थी और उससे मुस्लिम किया था। उन्हें लगता था कि लोग पता नही उनके बेटे के बारे मैं क्या बाते बनाएंगये।

   अगले साल उनको अपने बेटे की शादी करनी थी उन का बेटा शादी के लिए तैयार नही हो रहा था

वो इस बात से बहुत परेशान थी की वो तैयार नही हो रहा है। कुछ दिनों बाद पता चला की उनका बेटा भी किसी हुन्दु लड़की से शादी करना चाहता था। आंटी इस बात से बहुत परेशान थी की वो लोगो से क्या कहेंगी लेकिन फिर उन्होंने इक तरीका शुरू कर दिया वो लोगो से ज़्यादा मिलने झूलने लगीं और उन को अपबे बेटे के बारे में बताने लगीं। और कहने ले की बड़ा ही नाइक काम कर रहा है पहले लाधिक को मुसलमान करेगा फिर निकहा करेगा। बार बार वी लोगों को यही बात रहीं थी की पहले लड़की अपने धर्म को अपने मस्त पता कोको चोइडे गई तब निकाह होगा।

     आंटी जी यही बात मुझ बार बार परेशान करती रहती है कि क्यों हर बार हर चीज़ मई इक लड़की को ही सब कुछ छोड़ना पड़ता है क्यों हर बार सब कुछ इक लड़की को ही करना पड़ता है। अगर आंटी की खुद की बेटी कुछ ऐसा करती तो आंटी उससे बुरा भला कहती। लेकिन उनका बेटा किसी और से ये करा रहा था तो वो लोग बाते ना बनाये इसलिए लोगो को यह बोल रहीं थी। क्या हर बार अपने आप को साबित करने के लिए अपने आपको दिखेंदिखने के लिए की मैं सच मई तुम से पियार करती हूं ज़रूरी की अपना धर्म और और अपने मास बाप को छोड़ना पड़े क्या कभी लड़का ये सब नही जर सकता बस इसिलुये मुझे ये बात समझ नही आती।







3. Questions on education, learning and teaching



मैने 2016 मैं बीएड मई एडमिशन लिया था और  एडमिशन लेने  के बाद मैं बहुत ही उत्सुक थी साथ ही बहुत ज़्यादा परेशान भी थी की क्या क्या नया होने वाला है।और जिस बात का मुझे डर था वही हुआ यह भी लोगो की इक सोच बनी होइ थी हर तरह के लोगो के लिए मैं इक हिंदी मध्यम स्टूडेंट हों। और मैं जैसा सोच रही थी यह भी वेसा ही हुआ लोगो की सोच यह पर यही थी या ये खा जाये की है की हिंदी मध्यम स्टूडेंट्स कुछ भी नही क्र सकते लोगो इक दूसरे को उनकी भाषा को लेकर जज क्र रहे हैं। लेकिन हम्म पता है कि भाषा मैने नही रखती है और भाषा कभी भी हमने आगये बढ़ने से रूकभी नही सकती है तो इसलिए मैं यही कहना चाहूंगी कि लोग जैसा सोच रहे है वो सच नही है। वो देख नही पा रहे हैं। कि सभी बचे सामान हैं और हर बचा वो क्र सकता है जो वो चाहता है।